राम का चरित्र

श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम माना जाता है और इसके पीछे एक कारण है। उन्होंने हमेशा अपने धर्म(कर्तव्य) को महत्वपूर्ण माना है और आश्चर्यजनक रूप से राम अपने धर्म पालन को लेकर इतने अधिक कटिबद्ध है कि कई बार वह गलत भी लगने लगते है। जहां केकैयी अपने पुत्र को सिंहासन दिलवाने के लिये वृहद षड्यंत्र रचती है तो राम बिना किसी प्रश्न के वनवास को चले जाते है। कल्पना करें कि आप सर्वगुण सम्पन्न, अपने माता-पिता की सारी बातें मानने वाले घर में सभी के चहेते पुत्र है और एक दिन आपके पिता आपको अपनी संपति से बेदखल कर देते है तो आप क्या करेंगे? अवश्य ही आप बौखला जाएंगे लेकिन राम ऐसा नहीं करते है वह चुपचाप वनगमन कर लेते है, क्योंकि वह इसी को अपना पुत्रधर्म मानते है।

इसका दूसरा उदाहरण मिलता है, जब वह बाली का वध करते है। बाली मरते हुए पूछता है कि क्यों उन्होंने छुपकर उस पर हमला किया? जिसका वह जवाब देते है कि अगर नगर में कोई पागल भालू घुस आए तो एक क्षत्रिय क्या करेगा? वह बाली को एक जंगली पशु मानते है और उससे सुग्रीव को भयमुक्त करना अपना क्षत्रिय धर्म।

रामायण के बारें में एक भ्रांति है कि राम ने सीता कि अग्नि परीक्षा ली थी। अधिकतर बुद्धिजीवी राम की इस आधार पर आलोचना भी करते है, किन्तु यह सत्य नहीं है। राम ने सीता कि अग्नि परीक्षा नहीं ली थी, वह स्वयं ही आग में कूद गई थी। प्रश्न उठता है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया था? इसके कारण राम ही थे!

राम ने भला सीता से ऐसा क्या कहा था कि वे आग में कूदने को आतुर हो गई? उन्होंने सीता से कहा था कि रावण द्वारा एक वर्ष रखने के पश्चात वह कैसे उन्हें अपने साथ लेकर जाएंगे!? सीता यह सुनकर बेहद दुखी हो गई थी।

तो क्या राम सीता को अपवित्र मानते थे? क्या उनके मन में सीता के लिये घृणा के भाव थे? नहीं, यह विपरीत था। ज़रा सोचिये, उनके पिता की तीन रानियां थी। जंगल में रहते उनकी पत्नी का किसी राक्षस ने अपहरण कर लिया था, वह वानरों की सेना इक्कठी करते है और रावण से युद्ध कर सीता को मुक्त कराते है। क्या वह दूसरी शादी नहीं कर सकते थे? अगर सीता से उन्हें प्रेम न होता तो वह इतना जतन क्यों करते? आप मान सकते थे कि उन्होंने अपने स्वाभिमान के लिये ऐसा किया और वह रावण को अपनी पत्नी का अपहरण करने के लिये दंड देना चाहते थे। अगर ऐसा होता वह रावण के पास दूत भेजकर रावण को सीता को वापस लौटाने के लिये नहीं कहते, न ही रामेश्वरम में रावण को पूजा करने के लिये बुलाते। स्पष्ट था उन्होंने सीता के प्रेम के वशीभूत ही ऐसा किया था।

लेकिन अगर वह सीता से इतना ही प्रेम करते थे तो उन्होंने सीता से ऐसा क्यों कहा था? जवाब है 'राजधर्म'।

वह जानते थे कि भविष्य में ऐसी स्थिति आएगी जब जनता उन पर इसी बात के लिये टिप्पणियां करेगी, उनका उनके शासक पर विश्वास कम हो जाएगा और उन्हें राजधर्म निभाने में कठिनाई आएगी। ऐसा हुआ भी। जनता ने उन पर लांछन लगाये और मजबूरन उन्हें अपनी पत्नी को वन भेजना पड़ा।

सोचिये, क्या बीती होगी उन पर जब उन्हें अपनी प्रिय पत्नी को वन भेजना पड़ा। क्या उनके लिये यह सरल रहा होगा? नहीं, लेकिन वह यह दर्शाना चाहते थे कि एक राजा के लिये व्यक्तिगत धर्म(पतिधर्म) से राजधर्म अधिक महत्वपूर्ण होता है।

इसका एक और उदाहरण लक्ष्मण की मृत्यु के रूप में देखने को मिलता है। जब श्रीराम अयोध्या के राजा थे, तब एक दिन काल (मृत्यु) तपस्वी के रूप में अयोध्या आया। काल ने श्रीराम से अकेले में बात करने की इच्छा प्रकट की और कहा कि यदि कोई हमें बात करता हुआ देख ले तो वह आपके द्वारा मारा जाए। श्रीराम ने काल को ये वचन  दिया और लक्ष्मण को पहरा देने के लिए दरवाजे पर खड़ा कर दिया ताकि कोई अंदर न आ सके। जब काल और श्रीराम बात कर रहे थे, तभी महर्षि दुर्वासा वहां आ गए। वे श्रीराम से मिलना चाहते थे। लक्ष्मण ने उनसे कहा कि आपको जो भी कार्य है, मुझसे कहिए, मैं आपकी सेवा करूंगा। यह बात सुनकर महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा कि अगर इसी समय तुमने जाकर श्रीराम को मेरे आने के बारे में नहीं बताया तो मैं तुम्हारे पूरे राज्य को श्राप दे दूंगा। लक्ष्मण ने सोचा कि अकेले मेरी ही मृत्यु हो, यह अच्छा है किंतु प्रजा का नाश नहीं होना चाहिए। यह सोचकर लक्ष्मण ने श्रीराम को जाकर दुर्वासा मुनि के आने की सूचना दे दी। महर्षि दुर्वासा की इच्छा पूरी करने के बाद श्रीराम को अपने वचन का ध्यान आया। 

तब लक्ष्मण ने कहा कि आप निश्चिंत होकर मेरा वध कर दीजिए, जिससे आपकी प्रतिज्ञा भंग न हो। जब श्रीराम ने ये बात महर्षि वशिष्ठ को बताई तो उन्होंने कहा कि आप लक्ष्मण का त्याग कर दीजिए। साधु पुरुष का त्याग व वध एक ही समान है। श्रीराम ने ऐसा ही किया।श्रीराम द्वारा त्यागे जाने से दुखी होकर लक्ष्मण सीधे सरयू नदी के तट पर पहुंचे और योग क्रिया द्वारा अपना शरीर त्याग दिया।

अब सोचिये जो भाई सारी उम्र उनके साथ रहा, जिसने हर सुख दुख में उनका साथ दिया, ऐसे भाई का त्याग उनके लिये आसान रहा होगा? लेकिन वह यह दर्शाना चाहते थे कि एक राजा के लिये उसका वचन महत्वपूर्ण होता है।

रामायण को इसी लिये रामचरितमानस कहा जाता है। यह राम और रावण के युद्ध से अधिक राम के चरित्र को दर्शाती है।

आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

-सुमित मेनारिया

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